Nazare Shayari
बहोत गज़ब का नज़ारा है
इस अजीब सी दुनिया का
लोग सबकुछ बटोरने मे लगे है
खाली हाथ जाने के लिए
नज़ारो कि बात करते है वो
लगता है अब तक कुछ ख़ास नही देखा
वो कहते है वादियो मे सुकून मिलता है
शायद घाटो पर शाम बिता कर नही देखा
कुदरत के नज़ारों को समेट लूं अपनी यादों में
ना जाने कब ज़िन्दगी की शाम हो जाए
ये भी क्या है खूब रात हम तारे देखतें हैं
चांद देखो तुम और हम नज़ारे देखते हैं
नज़ारे शायरी
बात नज़रिए की थी जनाब
नज़ारों को तो
तुमने बेवज़ह दोषी ठहराया था
यूँ बारिशों में न भीगो, ये नजारे हमें तड़पाते हैं
भीगते तुम हो और अरमान हमारे बह जाते हैं
वो तेरा पहली नजर का नज़राना
नजरों को मिलाकर, अधरों का मुस्कराना
नाराज़ हो क्या हमसे??
या बदलें है नज़ारें या नज़राना पुराना
ये कस्ती ये समन्दर
ये लहरें ये नज़ारे
इसमें डूबता हर कोई
न हमारे न तुम्हारे
सोच को बदलो सितारे बदल जाएंगे
नज़र को बदलो नज़ारे बदल जाएंगे
जरूरत नहीं कश्ती को बदलने की
दिशाएं बदलो किनारे बदल जाएंगे
जाने अब क्या देखेंगी ये आंखें
सारे नज़ारे खो गए
तुमने तो नींद खरीद ली होगी अपनी
जाने कैसे झेलेंगी मुझे ये रातें
सीनेपे ज़ख्म हो गए
Najare Shayari
नजरें हीं नजारों की एहमियत समझती हैं
और उन्हें लगता है उनका नज़रिया ही काफी है
नजारे तो यहाँ बंद आँखों से भी नजर आते हैं
एक बात बता
क्या हम तुझे ख़्वाबों में भी सताते हैं
नजारे बदल जाते हैं जब
उम्र का पड़ाव पार होता है
मौसम का तो पता नहीं पर हां
नज़र नज़ारे ग़लत देख रहीं हो
तो नज़रों से गिरना लाज़मी है
तारे देखे सितारे देखे, देखे कई नज़ारे है
खूबसूरत तो है वो पर सिर्फ हमारे है
मन में तस्वीर यार की बसाकर
कल के नजारें आँखों के सामने पाऊँ
भर आते नैन जब तुजे पास ना पाऊँ
नजारे शायरी
वो नज़ारे जो कैमरे में आ ना सके
मेरी नज़रों में कैद हैं
आज हमने कोहरे के नजारे में भी जंग देखा
कभी बादलों को चिरती किरणें देखी तो
कभी बादलों से सूरज को ढकते देखा
कुछ तो हम मुहब्बत के मारे थे
कुछ ज़वानी के हसीन नज़ारे थे
तेरी अदाओं से बच भी कैसे जाते
उड़ती जुल्फ़ों के कातिल इशारे थे
Nazara Shayari
आंखें मूद कर रखोगे अगर
तो नज़ारे छूट जायेंगे
इस सफ़र से जुड़े जो ख़्वाब थे
वो हकीक़त से रूठ जायेंगे
बेहद खूबसूरत नज़ारे हैं
फकत नज़ारे हैं
मत कर इतना गुरूर
अपनी नज़रों के नज़ारों पर
जिस रोज़ हमसे मिलेंगी
मिलना मिलाना भूल जायेंगी
नजरिये थे देखने के या इशारे हसीं थे
फलक तो वही था पर नज़ारे हसीं थे
ना देखी खूबसूरती मैंने उन नज़ारों की
जो बैठे थे भटकाने मुझे मेरी मंजिल से
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चुराते हैं वो नजरें जो नजारों को तरसते थे
मौसम में भी ना बरसे जो बिन मौसम बरसते थे
फकत मेरी नहीं रातें खुली आंखों में गुजरी हैं
खबर हमको भी है तुम भी मेरी खातिर तड़पते थे
लोग कहते है ताजमहल से सुन्दर कोई नही
मै कहता हूँ
मेरे महबूब के आगे क्या नजारे ताजमहल के
चुभने लगे कुछ ख्वाब अब पाने की चाह में
आँखो को हमने अब नजारे वो दे दिए
खामोश रात में सितारे नहीं होते
उदास आंखों में रंगीन नजारे नहीं होते
हम कभी ना करते याद तुमको
अगर आप हमें प्यारे ना होते
मेरे आँखों में सिमटे हुए तेरे नजारें
आंखे खोलू, दुनिया देखूं जरुरी है क्या?
नज़ारे देखने को तो पूरी कायनात है
पर मैं सिर्फ़ तुम्हे देखना चाहता हूं
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नजर ने नजारों को
नजर भर के भी न देखा
इससे पहले नज़ारो के मालिक ने
नज़ारो को ही नज़रबंद कर दिया
तूम अकेले हो गम के राहों के मुसाफ़िर
नज़रें उठा के देखो राही
नज़ारे कितने ही तुम्हारा इंतज़ार करते हैं
नजारों में अब तू ही तू है
नजरों में तो पहले से ही था
नहीं देखता मैं खुद को
अब किसी और की नज़र से
अब ये नज़रें भी मेरी हैं और
ये नज़ारे भी मेरे है
सुनहरी शाम ये और ये बहता समंदर
ख्वाहिशें जगा रहे है ये हम दोनों के अंदर
ये दिलकश नज़ारे सभी है इशारे
कुछ तो होने को है आज बीच हमारे
नज़रों का क्या है,
नज़रों में तो अच्छे नज़ारे भी
कभी-कभी फिके पड़ जाते है
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सब ख्वाब तुम्हारे ही देखें हैं
सिवा इसके हमने न नजारे देखे हैं
इश्क में रह कर, इश्क का क्या मजा
जुदा हो कर देखिए, नजारे ही नजारे है
हम इतने करीब है उनके कि
नज़र में आते नहीं
हमारी नज़र को उनके नज़ारे के सिवा
कुछ भाता नहीं
मेरे मरने के बाद उफ़्फ क्या नज़ारे हो रहे होंगे
कुछ ज़बर्दस्त तो कुछ ज़बर्दस्ती रो रहें होंगे
जैसे बारिश का होना,
मौसम बदल देता है, वैसे
ही अच्छी सोच का होना
नज़ारे बदल देता है
रंग बिरंगी घटा और
नजारा क्या देखू
तुझ को ही ना देखू तो और
जमाना क्या देखू
बरसो हो गए तुम्हे देखे हुए
फिर भी तुम्हारा चेहरा दिल पे छाया रहता हैं
कुछ वक़्त ना देखने से
नज़रे नजारे थोड़ी भूल जाती है
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चल पड़े लिए मन में उमंग भरे अंगारे
एक हसीं सफ़र के कुछ हसीं नजारे
बस साथ मैं है कुछ ख़्वाब हमारे
जिनके पीछे फिरते है बनके बंजारे
कोई तुमको चाँद कहे, कोई तुमको सितारा
जो तुमको देख ले देखना वो चाहे दोबारा
ये नजारे खूबसूरत कितने है देख लो जरा
निगाहों कि कोशिशें तो लाजमी है ग़ालिब
नजारों कि तलब किसे नहीं होती
कई नजरें ठहरी हुई थी जरूर
नजारों में कोई बात रही होगी
वो खामोश है यार, बेजुँबा नही
जबरन अनसुना कर रही होगी
मूझे जिदंगी जीने के लिए
तेरी नजरो की नहीं
तेरे नजारों की जरुरत है
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