Ghar Shayari
बेवजह घर से निकलने की जरूरत क्या है
मौत से आँखे मिलाने की जरूरत क्या है
सब को मालूम है बाहर की हवा है कातिल
यूँ ही कातिल से उलझने की जरूरत क्या है
घर में झीने रिश्ते मैंने लाखों बार उधड़़ते देखे
चुपके चुपके कर देती है जाने कब तुरपाई अम्मा
बाबूजी गुज़रे आपस में सब चीज़ें तक़सीम हुईं
तब मैं घर में सबसे छोटा था मेरे हिस्से आई अम्मा
अगर खिलाफ है होने दो जान थोड़ी है
ये सब धुआं है कोई आसमान थोड़ी है
लगेगी आग तो आयेंगे घर कई जद में
यहाँ पे सिर्फ हमारा मकान थोड़ी है
Ghar Ki Yaad Shayari
घर से दूर हैं तो घर की याद आती है
वो बचपना वो छोटी सी मुहब्बत याद आती है
कभी मन होता है कि भूल जायें सब कुछ मगर
हाथ जलता है जब तवे से तो माँ की याद आती है
कोई वीरानी सी वीरानी है
दश्त को देख के घर याद आया
दुनियाँ भर की यादें हम से मिलने आती है
शाम ढले इस सूने घर में मेला सा लगता है
अगर तेरे बिना जीना आसान होता तो
कसम मुहब्बत की तुझे याद करना भी गुनाह समझते
Ghar Par Shayari
उलझी शाम को पाने की ज़िद न करो
जो ना हो अपना उसे अपनाने की ज़िद न करो
इस समंदर में तूफ़ान बहुत आते है
इसके साहिल पर घर बनाने की ज़िद न करो
रूठे हुए अपनों को मना लूँगा एक दिन
दिल का घर फिर से बसा लूँगा एक दिन
लगने लगे जहां से हर मंजर मेरा मुझे
ख्वाबों का वो जहान बना लूँगा एक दिन
अभी तो शुरूआत हुई है इस सफ़र की
बेरंग जिंदगी में रंग सजा लूँगा एक दिन
घर से निकलो तो पता चलता है
जख्म उसका भी नया लगता है
रास आ जाती है तन्हाई भी
एक-दो रोज बुरा लगता है
कितने जालिम है दुनिया वाले
घर से निकलो तो पता चलता है
Shayari On Ghar
बाज़ार जा के ख़ुद का कभी दाम पूछना
तुम जैसे हर दुकान में सामान हैं बहुत
आवाज़ बर्तनों की घर में दबी रहे
बाहर जो सुनने वाले हैं शैतान हैं बहुत
ना कुछ पाने की आशा ना कुछ खोने का डर
बस अपनी ही धुन बस अपने सपनो का घर
काश मिल जाए फिर मुझे वो बचपन का पहर
Ghar Ka Batwara Shayari
कल तक जो साथ थे आज अलग क्यूँ बैठे हैं
घर के सामने इतनें सामान बिख़राए क्यूँ बैठे हैं
फिर से ये दोनों भाई पंच बुलाए यहाँ क्यूँ बैठे हैं
दोनों भाई बंटवारे का मुद्दा लिए यहाँ क्यूँ बैठे हैं
बड़े अनमोल है ये खून के रिश्तें
इनको तू बेकार ना कर
मेरा हिस्सा भी तू ले ले मेरे भाई
घर के आँगन में दीवार ना कर
Ghar Shayari In Hindi
घर से दूर है मस्जिद क्या चला जाएँ
किसी रोते हुए बच्चे को हँसा दिया जाएँ
खुद को मनवाने का मुझको भी हुनर आता है
मैं वह कतरा हूँ समन्दर मेरे घर आता है
मुझे ख़बर थी मेरा इन्तजार घर में रहा
ये हादसा था कि मैं उम्र भर सफ़र में रहा
काश मेरा घर तेरे घर के करीब होता
बात करना न सही देखना तो नसीब होता
इंसान चाहता है कि उसे उड़ने को पर मिले
परिंदा चाहता है कि उसे रहने को घर मिले
जहां सजदा हो बुजुर्गों का वहाँ की तहजीब अच्छी है
जहाँ लांघे न कोई मर्यादा उस घर की दहलीज अच्छी है
Ghar Se Dur Shayari In Hindi
बहुत दूर है तुम्हारे घर से हमारे घर का किनारा
पर हम हवा के हर झोंके से पूछ लेते हैं क्या हाल है तुम्हारा
Ghar Wapsi Shayari In Hindi
वापसी का कोई सवाल ही नहीं
घर से निकला हूँ आँसुओ की तरह
घर अंदर ही अंदर टूट जाते है
मकान खड़े रहते है बेशर्मों की तरह
कभी तो शाम ढले अपने घर गए होते
किसी की आँख में रह कर सँवर गए होते
शहर भर में मजदूर जैसे दर-बदर कोई न था
जिसने सबका घर बनाया उसका घर कोई न था
वो शाख है न फूल अगर तितलियाँ न हो
वो घर भी कोई घर है जहाँ बच्चियाँ न हो
उस की आँखों में उतर जाने को जी चाहता है
शाम होती है तो घर जाने को जी चाहता है
थक चूका हूँ मेहमान की तरह घर आते-आते
बेघर हो गये है हम चंद रूपये कमाते-कमाते
वो कौन है दुनिया में जिसे गम नहीं होता
किस घर में ख़ुशी होती है मातम नहीं होता
सूना-सूना सा मुझे घर लगता है
माँ नहीं होती है तो बहुत डर लगता है
आईना देख कर तसल्ली हुई
हमको इस घर में जानता है कोई
अपने घर के लोग अगर दुश्मनी करें
किस आसरे पे यारों बसर जिन्दगी करें
कभी तो शाम ढले अपने घर गए होते
किसी की आँख में रह कर सँवर गए होते
Ghar Sad Shayari
सब का ख़ुशी से फ़ासला एक कदम है
हर घर में बस एक ही कमरा कम है
दोस्ती कब और किस से हो जाएँ अंदाजा नहीं होता है
दिल एक ऐसा घर है जिस में दरवाजा नहीं होता है
काश मेरा घर तेरे घर के सामने होता
मोहब्बत न सही दीदार तो होता
मिरे ख़ुदा मुझे इतना तो मो तबर कर दे
मैं जिस मकान में रहता हूँ उस को घर कर दे
घर आ कर बहुत रोये माँ-बाप अकेले में
मिट्टी के खिलौने भी सस्ते नहीं थे मेले में
Ghar Ke Upar Shayari
लोग टूट जाते है एक घर बनाने में
तुम तरस नहीं खाते बस्तियाँ जलाने में
इतना न सवारों अपने जिस्म को इसे तो मिट्टी में मिल जाना है
सवारना है तो अपनी रूह को सवारों जिसे परमात्मा के घर जाना है
नज़र की चोट जिगर में रहे तो अच्छा है
ये बात घर की है घर में रहे तो अच्छा है
तुम्हारी राह में मिट्टी के घर नहीं आते
इसलिए तो तुम्हे हम नजर नहीं आते
Ghar Status
पता अब तक नहीं बदला हमारा
वही घर है वही क़िस्सा हमारा
गलतियाँ करने से मैं अब घबराने लगा हूँ
जिम्मेदारियाँ घर की मैं जब से उठाने लगा हूँ
काश मेरा घर तेरे घर के बराबर होता
तू ना आती तेरी आवाज़ तो आती
अपना गम ले कर कहीं और न जाया जाएँ
घर में बिखरी हुई चीजों को सजाया जाएँ
क्या शहर क्या गांव सब बदलने लगे
एक घर में कई चूल्हे जलने लगे
घर शायरी
कभी दिमाग कभी दिल कभी नजर में रहो
ये सब तुम्हारे ही घर है किसी भी घर में रहो
मुमकिन है हमें माँ-बाप भी पहचान न पायें
बचपन में ही हम घर कमाने निकल आयें
आज फिर घर में कैद हर हस्ती हो गई
जिन्दगी महँगी और दौलत सस्ती हो गई
बड़ी चोट खायी जमाने से पहले
जरा सोचिये दिल लगाने से पहले
उस की आँखों में उतर जाने को जी चाहता है
शाम होती है तो घर जाने को जी चाहता है
अजब अंदाज से ये घर गिरा है
मिरा मलबा मिरे ऊपर गिरा है
Home Quotes In Hindi
घर की तामीर तसव्वुर ही में हो सकती है
अपने नक़्शे के मुताबिक़ ये ज़मीं कुछ कम है
बारिश का इंतज़ार कितनी सिद्दत से करता है किसान
मालूम है उसे जबकि उसका घर मिट्टी का है
कितना खौफ होता है शाम के अंधेरों में
पूछ उन परिंदों से जिनके घर नहीं होते
खुला ना रख हर के लिए दिल का दरवाजा
ये दिल एक घर है इसे बाजार मत बना
अब घर भी नहीं घर की तमन्ना भी नहीं है
मुद्दत हुई सोचा था कि घर जाएँगे इक दिन
तोड़ दिए मैंने घर के आईने सभी
प्यार में हारे हुए लोग मुझसे देखे नहीं जाते
दर-ब-दर ठोकरें खाईं तो ये मालूम हुआ
घर किसे कहते हैं क्या चीज़ है बे-घर होना
दिल मे घर करके बैठे है ये जो ज़िद्दी से ख़्वाब
कागज पे उतार मै वो सारे मेहमान ले आऊँ
आज भी मेरी आंखे घर के दरवाज़े पर टिकी रहती हैं
की तुम जरुर आओगे
पहले हर चीज़ थी अपनी मगर अब लगता है
अपने ही घर में किसी दूसरे घर के हम हैं
मुहब्बत हमारी नहीं रास आई
लगी आग घर को बसाने से पहले
रातो में घर का दरवाज़ा खुला रखती हूँ
काश कोई लुटेरा आये और मेरे ग़मों को लुट ले जाए
किस से पूछूँ कि कहाँ गुम हूँ कई बरसों से
हर जगह ढूँढता फिरता है मुझे घर मेरा
Home Status
दीवार क्या गिरी मेरे कच्चे मकान की फ़राज़
लोगों ने मेरे घर से रास्ते बना लिए
दिल मे घर करके बैठे है ये जो ज़िद्दी से ख़्वाब
कागज पे उतार मै वो सारे मेहमान ले आऊँ
घर की खूबसूरती घर की बनावट से नहीं
वहा रहने वालो से होती हैं
अपने मेहमान को पलकों पे बिठा लेती है
गरीबी जानती है घर में बिछौने कम है
बहुत आसान है जमीन पे घर खड़ा कर लेना
जिन्दगी गुजर जाती है दिल में घर बनाने के लिए
घर के बाहर ढूँढ़ता रहता हूँ दुनिया
घर के अंदर दुनिया-दारी रहती है
बोल मीठे ना हों तो हिचकियाँ भी नहीं आती
घर बड़ा हो या छोटा
अगर मिठास ना होंतो इंसान क्या
चींटियां भी नहीं आती
सुनो तुम एक बार पुछ लो कि कैसा हुँ
घर मेँ पङी सारी दवाईयाँ ना फेँक दुँ तो कहना
तमाम रात मेरे घर को एक दर खुला रहा
मैं राह देखती रही वो रास्ता बदल गया
दर-ब-दर ठोकरें खाईं तो ये मालूम हुआ
घर किसे कहते हैं क्या चीज़ है बे-घर होना
सब कुछ तो है क्या ढूँडती रहती हैं निगाहें
क्या बात है मैं वक़्त पे घर क्यूँ नहीं जाता
अखबार तो रोज़ आता है घर में
बस अपनों की ख़बर नहीं आती
तुम परिन्दें का दुःख नहीं समझे
पेड़ पर घोंसला नहीं घर था
अकेला उस को न छोड़ा जो घर से निकला वो
हर इक बहाने से मैं उस सनम के साथ रहा
सुना है कि उसने खरीद लिया है करोड़ो का घर शहर में
मगर आँगन दिखाने वो आज भी बच्चों को गाँव लाता है
मोहब्बत मुक्म्मल न हो तो ही अच्छा हैं
वरना महबूब के घर झाङू पोंछा करना पड़ता
एक ही ख्वाब देखा है कई बार मैंने
तेरी साड़ी में उलझी है चाबियां मेरे घर की
कोई भी घर में समझता न था मिरे दुख सुख
एक अजनबी की तरह मैं ख़ुद अपने घर में था
अब तक न ख़बर थी मुझे उजड़े हुए घर की
वो आए तो घर बे-सर-ओ-सामाँ नज़र आया
मौत न आई तो अल्वी
छुट्टी में घर जाएँगे
चले हैं घर से तो धूप से भी जूझना होगा
सफ़र मे हर जगह घने बरगद नही मिलते
उस को रूखसत तो किया था मुझे मालूम न था
सारा घर ले गया घर छोड़ के जाने वाला
ना जाने माँ क्या मिलाया करती है आटे में
ये घर जैसी रोटियां और कहीं मिलती ही नहीं
आमाल मुझे अपने उस वक़्त नज़र आए
जिस वक़्त मेरा बेटा घर पी के शराब आया
ये घर खाली-खाली सा लगता हैं
जब तुम नहीं होती
एक मकान तब तक घर नहीं बन सकता
जब तक उसमे दिमाग और शरीर दोनों के लिए
भोजन और भभक ना हो
हम ने घर की सलामती के लिए
ख़ुद को घर से निकाल रक्खा है
ठहाके छोड़ आये हैं अपने कच्चे घरों मे हम
रिवाज़ इन पक्के मकानों में बस मुस्कुराने का है
लोग टूट जाते हैं एक घर बनाने में
तुम तरस नहीं खाते बस्तियां जलाने में ?
ए मौत जरा पहले आना गरीब के घर
कफ़न का खर्च दवाओं में निकल जाता है
मकाँ है क़ब्र जिसे लोग ख़ुद बनाते हैं
मैं अपने घर में हूँ या मैं किसी मज़ार में हूँ
हसीना ने मस्जिद के सामने घर क्या खरीदा
पल भर में सारा शहर नमाज़ी हो गया
तमाम रिश्तों को मैं घर पे छोड़ आया था
फिर उस के बाद मुझे कोई अजनबी नहीं मिला
किसी को घर से निकलते ही मिल गई मंजिल
कोई हमारी तरह उम्र भर सफ़र में रहा
एसा घर तक साथ रहेगा और परिवार
श्मशान तक जबकि कर्म और धर्म इस के
साथ परलोक में साथ रहेगा
घर अपना बना लेते हैं जो दिल में हमारे
हम से वो परिंदे उड़ाये नहीं जाते
ये सर्द रात ये तन्हाईयाँ ये नींद का बोझ
हम अपने शहर में होते तो घर गए होते
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